बिहार के सरकारी विद्यालयों में छुट्टियों को रद्द करने पर विवाद

परिचय
नेपाल के सभी सरकारी प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में छुट्टियों को रद्द करने के बिहार सरकार के हाल के निर्णय ने शिक्षकों के बीच विवाद और विरोध की शुरुआत की है। यह कदम बिहार राज्य प्रारंभिक शिक्षक संघ के आह्वान का परिणाम है। शिक्षकों ने अपनी मजबूत विरोध प्रकट करके आदेश की प्रतियां जलाकर प्रदर्शन किया है।
आदेश की प्रतियां और विरोध
बिहार सरकार ने सभी सरकारी प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में छुट्टियों को रद्द करने के आदेश को प्रकट किया है। इस आदेश के खिलाफ शिक्षकों का विरोध बढ़ रहा है, और उन्होंने इसके खिलाफ प्रतिवाद किया है। उन्होंने आदेश की प्रतियों को आग लगाकर उनकी मुख्यता को दिखाया है और इसे खारिज करने की मांग की है।
आदेश के प्रभाव
इस आदेश के प्रभावस्वरूप, विद्यालयों में रक्षाबंधन, कृष्णाष्टमी, और तीज जैसे भारतीय पर्वों की छुट्टियां समाप्त कर दी गई हैं, जबकि छठ और दुर्गा पूजा जैसे पर्वों की छुट्टियां कटौती की गई है। इसका परिणामस्वरूप, शिक्षा विभाग के कार्यालय भी बंद रहेंगे।
शिक्षकों के विरोध का कारण
शिक्षकों का मानना है कि पर्वों के दौरान छात्रों का उत्साह बढ़ता है और उन्हें उनकी संस्कृति और मूल्यों का सम्मान करने का अवसर मिलता है, और उन्हें विद्यालय आने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इस आदेश के परिणामस्वरूप, इस प्रोत्साहन का अवसर उनसे छीना जा रहा है जो उनके अधिकारों का एक हिस्सा है।
निष्कर्ष
इस विवादस्त फरमान के परिणामस्वरूप, शिक्षक संघ का संघर्ष जारी रहेगा और उनके मान-सम्मान और अधिकारों की प्राप्ति के लिए उनका प्रयास जारी रहेगा। बिहार सरकार को इस आदेश को फिर से जांचने और शिक्षकों के मानवाधिकारों का पालन करने के लिए कदम उठाने की सलाह दी जाती है।
बिहार राज्य प्रारंभिक शिक्षक संघ के आवाहन के परिणामस्वरूप, बिहार सरकार ने सभी सरकारी प्राथमिक, माध्यमिक, और उच्च माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की अवकाश रद्द करने के आदेश को प्रकट किया है। इस आदेश के खिलाफ शिक्षकों की ओर से विरोध दिखाया गया है, और उन्होंने इसके खिलाफ प्रतिवाद किया है। सरकार के तानाशाही फरमान के खिलाफ, शिक्षकों का आक्रोश बढ़ रहा है। संघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप कुमार पप्पू ने मीडिया के सामने यह बताया कि निदेशक माध्यमिक शिक्षा के आदेश के तहत सरकारी विद्यालयों में विभिन्न पर्वों की छुट्टियों को रद्द करने का आदेश तत्काल प्रतिष्ठानित होना चाहिए। उन्होंने इस आदेश को अविवादित रूप से वापस लेने की मांग की है। उनका कहना है कि बच्चों का उत्साह उनके दिलचस्पी क्षेत्र में ऊंचाई तक पहुँचने में महत्वपूर्ण होता है, और उन्हें इसका अवसर देना चाहिए। इस आदेश के परिणामस्वरूप, विद्यालयों में रक्षाबंधन, कृष्णाष्टमी, और तीज जैसे भारतीय पर्वों की छुट्टियां समाप्त कर दी गई हैं, जबकि छठ और दुर्गा पूजा जैसे पर्वों की छुट्टियों में कटौती की गई है। इसके परिणामस्वरूप, शिक्षा विभाग के कार्यालय भी बंद रहेंगे।
प्रदेश अध्यक्ष का कहना है कि पर्वों के दौरान बच्चों का उत्साह अधिक होता है और उन्हें उनके सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान करने का अवसर मिलता है, और उन्हें विद्यालय आने के लिए बाध्य करना उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। वह इस आदेश को बच्चों के अधिकारों का हनन मानते हैं और इसे उनकी संस्कृति और रीति के खिलाफ एक हमला समझते हैं। उनका कहना है कि यह एक षड्यंत्र है जो भारतीय सभ्यता और संस्कृति के खिलाफ हो रहा है। उनका आरोप है कि शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के तहत प्राथमिक विद्यालयों में 200 दिन और माध्यमिक विद्यालयों में 220 दिन के कार्य दिवसों का प्रावधान है, जिसे पूरा करने के लिए सभी अवकाशों को रद्द किया गया है। उनका आरोप है कि सरकार ने विभाग के उच्च अधिकारियों के साथ मिलकर इसे नजरअंदाज किया है।
उनका मानना है कि सरकार को इस तानाशाही फरमान को तत्काल वापस लेना चाहिए, अन्यथा यह विरोध प्रदर्शन को और भी तीव्र कर सकता है। उनका आगाह करना है कि शिक्षकों का संघर्ष उनके मान-सम्मान और अधिकारों की प्राप्ति के लिए जारी रहेगा।